हज़रते-गुलाम हमदानी साहब की ग़ज़ल जिस ज़मीन को तरह किया गया
शबे हिज्र सहर-ए-ज़ुल्मात निकली
मैं जब आँख खोली बहुत रात निकली
मुझे गालियाँ दे गया वो सरीहन
मिरे मुंह से हरगिज़ न कुछ बात निकली
हुआ वादी-ए-क़त्ल सहरा-ए-महशर
मिरी नाश जब रोज़े-मीक़त निकली
कमी कर गया नाज़े-पिन्हाँ का ख़ंजर
न जाँ तेरे बिस्मिल की हैहात निकली
तू ए मुसहफ़ी अब तो गर्मे-सुख़न हो
शब आईं दराज़ और बरसात निकली
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आसिफ ‘अमान’ साहब की ग़ज़ल
यह ग़म तो हुआ इश्क़ में मात निकली
मगर यूँ तमन्ना ए जज़्बात निकली
कहाँ सब्ज़ बाग़ अब्र दिखला रहा था
कहाँ जाके देखो ये बरसात निकली
न पूछो हिसाबे-शबो-रोज़े-उल्फ़त
कि दिन कब ढला और कब रात निकली
मुझे ख़ुद से मिलने से रोके थी इक शय
किया ग़ौर तो वो मिरी ज़ात निकली
यह देखा है अक्सर किसी के भी आगे
कोई ज़िक्र छेड़ा तेरी बात निकली
इलाजे-मुहब्बत है तर्के-मुहब्बत
ये ग़मख़्वार तेरी ग़लत बात निकली
ज़बां से यही सोचकर कीजे रुख़सत
पराई हुई मुंह से जो बात निकली
‘अमान’ उनकी सारी नई मंज़िलों से
हमारी पुरानी मुलाक़ात निकली
आसिफ़ अमान 08130599876
कहाँ सब्ज़ बाग़ अब्र दिखला रहा था
कहाँ जाके देखो ये बरसात निकल
Kya baat hai Bhai..
Bahut mubaarak.
Kya Kehne Asif bhai.. zindabad ..dili daad
Shukriya Kanha bhai!!
आसिफ़ अमान साहब उम्दा ग़ज़ल कही। इस ज़मीन को मैंने अपने कहने के लिये चुना था मगर आप बाज़ी मार गये। अच्छी ग़ज़ल कही मुबारकबाद
ग़ज़ल तो अब क्या कहूँगा मगर मतला ख़राब करना ठीक नहीं लग रहा सो हाज़िर है
छिड़ा ज़िक्र तेरा तिरी बात निकली
ये सूरज उगा और वो रात निकली
Dada Shukriya aapki muhabbat ka..
behad khoobsurat matla hai.. aapko ghazal post kar deni chahiye agar ho gai ho to.. yakeenan hameiN usse kuch na kuch seekhne ko hi milega..
आसिफ़ भाई।
कहने के अंदाज़ और मफ़हूम दोनों के हवाले से आपको पढ़ना एक सुखद अनुभव है।
वाह। दिली दाद कबूल फरमाएं।
सादर
नवनीत
Navneet bhai ye aapka husn-e-nazar aur pyar hai bas.. 🙂
Aasif Amaan Sahab,
Khoobsoorat ghazal ke liye Mubarakbaad aur daad qubool farmaayen.
Sadar
Pooja
Shukriya Pooja ji!!
Matla ta maqta sabhi ash’aar khoob hai’n. Mubaarakbaad
Shafiiq Raipuri sb zarra nawazi hai aapki!!
कहाँ सब्ज़ बाग़ अब्र दिखला रहा था
कहाँ जाके देखो ये बरसात निकली
Kya kahne Aasif Bhai..
Khoobsoorat ghazal..
Bahut mubaarak.
Shukriya Bakul bhai!!
बहुत बहुत दाद कबूल करें ।
Many thanks!!
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब
aasif bhaai bahu achhi ghazal hai
Shukriya Chhote bhai!!
अमान भाई
कहाँ सब्ज़ बाग़ अब्र दिखला रहा था
कहाँ जाके देखो ये बरसात निकली
अच्छा सिम्बल !!
न पूछो हिसाबे-शबो-रोज़े-उल्फ़त
कि दिन कब ढला और कब रात निकली
उम्दा शेर !
Pawan bhai zarra nawazi ka shukriya!!
यह देखा है अक्सर किसी के भी आगे
कोई ज़िक्र छेड़ा तेरी बात निकली
ye sher kuchh ziyada hi pasand aaya asif bhai
achchi ghazal hui…mubarakbaad qubool keejiye
Irshad bhai muhabbat hai aapki!!
nahot achchi ghazal… Mubarak
Shukriya Nazim Naqvi sb!!
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए दाद हाज़िर है।
Dwijendra ji bahad shukriya aapka!!
जनाब आसिफ़ अमन जी वाह वाह वाह बहुत खूब। शानदार ग़ज़ल कही है आपने शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें
– समर कबीर
Janab Samar Kabir sb! Nawazish hai aapki!!
मुझे ख़ुद से मिलने से रोके थी इक शय
किया ग़ौर तो वो मिरी ज़ात निकली
यह देखा है अक्सर किसी के भी आगे
कोई ज़िक्र छेड़ा तेरी बात निकली
Wahhhhhhh
Kya khub gazal hui hai
dili daad qubul kijiye sahab
Imran bhai Shukriya aapka!!
Aasif Amaan Sahab,
Khoobsoorat ghazal ke liye Mubarakbaad aur daad qubool farmaayen.