इक हुस्न हर तरह से ज़फ़ा में लगा रहा
इक इश्क़ फिर भी हम्दो सना में लगा रहा
उसने कहा था अब नहीं आऊंगा लौटकर
पर दिल तमाम उम्र दुआ में लगा रहा
शायद तुम्हारी यादों के साये थे जम’अ रात
मेला सा एक दिल के ख़ला में लगा रहा
ये जानता था गर्द ही आएगी दिल के हाथ
फिर भी न जाने क्यों मैं वफ़ा में लगा रहा
माज़ी के एक ज़ख़्म से आख़िर थमा न ख़ून
नाहक़ मैं एक उम्र दवा में लगा रहा
हरचंद बेख़बर था तमन्ना से उसकी पर
“मैं उसके साथ साथ दुआ में लगा रहा ”
तूफ़ाँ ने आज़माये थे क्या क्या न अपने दांव
लेकिन चराग़ दिल का हवा में लगा रहा
ख़ुशरंग रौशनी का वो चेहरा हरेक शाम
बनके धनक उफ़क़ की रिदा में लगा रहा
आलोक मिश्रा 09711744221
acchi ghazal hui hai pyaare
waah achchi ghazal hui aalok ji बधाई हो
KYA HASEEN GHAZAL HUYI HAI…WAHH WAHHH…HAR SHER MUKAMMAL AUR MAANI KHEZ
achchi ghazal hui aalok …nirantar kahte rahiye aapse bahut ummeeden hain
Aalok mishra sahab achchhi ghazal k liye badhayi sweekaar kare’n
इक हुस्न हर तरह से ज़फ़ा में लगा रहा
इक इश्क़ फिर भी हम्दो सना में लगा रहा
रिवायती रंग है जिसे इस ज़मीन पर अच्छे से कहा गया है !!! मतले पर दाद !!
उसने कहा था अब नहीं आऊंगा लौटकर
पर दिल तमाम उम्र दुआ में लगा रहा
उमीद की इंतेहा !!! मुहब्बत का ये रंग जो असम्भावना में भी सम्भावना देखता है बहुत सुन्दर है !!!
शायद तुम्हारी यादों के साये थे जम’अ रात
मेला सा एक दिल के ख़ला में लगा रहा
कहन बहुत अच्छी है !! शेर अपने शिल्प के कारण बहुत सुन्दर लग रहा है !!!
ये जानता था गर्द ही आएगी दिल के हाथ
फिर भी न जाने क्यों मैं वफ़ा में लगा रहा
वफा का अंजाम सभी को मालूम है लेकिन वफा अपने शिकार ढूंढ लेती है !!!
माज़ी के एक ज़ख़्म से आख़िर थमा न ख़ून
नाहक़ मैं एक उम्र दवा में लगा रहा
ये शेर भी बहुत सुन्दर कहा है !!!कटु स्म्रतियाँ जाती नहीं हैं !!!
हरचंद बेख़बर था तमन्ना से उसकी पर
“मैं उसके साथ साथ दुआ में लगा रहा ”
अच्छी गिरह !!
तूफ़ाँ ने आज़माये थे क्या क्या न अपने दांव
लेकिन चराग़ दिल का हवा में लगा रहा
हौसला बढाने वाली बात !!!!
ख़ुशरंग रौशनी का वो चेहरा हरेक शाम
बनके धनक उफ़क़ की रिदा में लगा रहा
सिमिलीज़ बेहतरीन है सब की सब !!! शेर तस्वीरों का मज़ा दे रहे हैं !!! रंग भी स्पष्ट हैं रंगत भी !! और अरूज़ के मुसाफिर के लिये इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है !!!! आलोक !! बहुत बहुत बधाई !!! इस कहन और इस शिल्प के लिये –मयंक
इक हुस्न हर तरह से ज़फ़ा में लगा रहा
इक इश्क़ फिर भी हम्दो सना में लगा रहा
उसने कहा था अब नहीं आऊंगा लौटकर
पर दिल तमाम उम्र दुआ में लगा रहा
शायद तुम्हारी यादों के साये थे जम’अ रात
मेला सा एक दिल के ख़ला में लगा रहा
ये जानता था गर्द ही आएगी दिल के हाथ
फिर भी न जाने क्यों मैं वफ़ा में लगा रहा
माज़ी के एक ज़ख़्म से आख़िर थमा न ख़ून
नाहक़ मैं एक उम्र दवा में लगा रहा
हरचंद बेख़बर था तमन्ना से उसकी पर
“मैं उसके साथ साथ दुआ में लगा रहा ”
तूफ़ाँ ने आज़माये थे क्या क्या न अपने दांव
लेकिन चराग़ दिल का हवा में लगा रहा
ख़ुशरंग रौशनी का वो चेहरा हरेक शाम
बनके धनक उफ़क़ की रिदा में लगा रहा
आलोक भाई।
क्या कहूं। बहुत अच्छी ग़ज़ल। दाद..दाद।
bahut khoobsurat gazal janaab Alok saheb tahe dil se daad-o-mubarqbaad aako
Umda ghazal ke liye mubaarakbaad kubool Karen aalok bhaai..
ये जानता था गर्द ही आएगी दिल के हाथ
फिर भी न जाने क्यों मैं वफ़ा में लगा रहा
माज़ी के एक ज़ख़्म से आख़िर थमा न ख़ून
नाहक़ मैं एक उम्र दवा में लगा रहा
हरचंद बेख़बर था तमन्ना से उसकी पर
“मैं उसके साथ साथ दुआ में लगा रहा ”
wahh wahhh bhaia kya hi gazal hui hai
dili daad qubul kijiye
Sadar
उसने कहा था अब नहीं आऊंगा लौटकर
पर दिल तमाम उम्र दुआ में लगा रहा
khuub
aLOK JI, KAMAL GHAZAL HAI, MUBARAKBAD.
इक हुस्न हर तरह से ज़फ़ा में लगा रहा
इक इश्क़ फिर भी हम्दो सना में लगा रहा
कैसा अच्छा मतला कहा है भाई , इक हुस्न …….इक इश्क़ …वाह वाह भाई
उसने कहा था अब नहीं आऊंगा लौटकर
पर दिल तमाम उम्र दुआ में लगा रहा
आहहहहह….क्या कहने भाई ….कितने पुराने ज़ख्मों को आइना दिख गया …वाह वाह
शायद तुम्हारी यादों के साये थे जम’अ रात
मेला सा एक दिल के ख़ला में लगा रहा
यादों के साये ….दिल का खला …..वाह वाह भाई …..क्या कहना
ये जानता था गर्द ही आएगी दिल के हाथ
फिर भी न जाने क्यों मैं वफ़ा में लगा रहा
यार क्या शेर कह रहे हो भाई…सलामत रहो….कैसा अच्छा शेर है भाई…वाह वाह वाह ….
माज़ी के एक ज़ख़्म से आख़िर थमा न ख़ून
नाहक़ मैं एक उम्र दवा में लगा रहा
कैसे अच्छे अच्छे मिसरे बांधे है भाई…..क्या बात है ….नाहक़ का तो जवाब ही नहीं
हरचंद बेख़बर था तमन्ना से उसकी पर
“मैं उसके साथ साथ दुआ में लगा रहा ”
वाह वाह वाह …गिरह भी कितनी अच्छी बाँधी है…. क्या कहने
तूफ़ाँ ने आज़माये थे क्या क्या न अपने दांव
लेकिन चराग़ दिल का हवा में लगा रहा
क्या कहने भाई क्या कहने …कहाँ तक तारीफ़ की जा सकती है ?????
ख़ुशरंग रौशनी का वो चेहरा हरेक शाम
बनके धनक उफ़क़ की रिदा में लगा रहा
बहुत खूबसूरत तस्वीर उतारी है भाई …..दिल खुश हो गया
अलोक भाई आपकी शायरी में एक बेचैनी है
हर मिसरा चीख चीख के उसी ढब को आवाज़ लगाता है जो दिल के सबसे ज़ियादा अजीज़ है …यूँ ही अच्छा कहते रहो भाई
आलोक जी कमाल ग़ज़ल हुई है
ढेरों मुबारक़बाद
सादर
पूजा