उदासियों की झील में खिली कली बहार की
चमक रही थी इस तरह कि फुलझड़ी अनार की
हवा थी मस्त मस्त और अपनी मस्तियों में गुम
कहानियां सुना रही थी गुल को अपने प्यार की
जिसे मैं तोड़ कर नदी में फेंक आई थी कभी
अभी तलक झनक झनक है दिल में उस सितार की
अँधेरे में भी अब मुझे दिखाई दे रहा है सब
‘ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की’
नज़र के वास्ते हज़ार फूल हैं खिले हुए
मगर बसा है संग ही नज़र में शिल्पकार की
बिछे हुए हैं आज भी नयन पुरानी राह में
पड़ी हुई है लत इन्हें तुम्हारे इंतज़ार की
रक़ीब साज़िशें करेगा आगे और भी मगर
लडूंगी जंग मैं तो उससे ‘सीमा’ आर पार की
सीमा शर्मा
waah kya baat hai !!
नज़र के वास्ते हज़ार फूल हैं खिले हुए
मगर बसा है संग ही नज़र में शिल्पकार की
bahut khuub
नज़र के वास्ते हज़ार फूल हैं खिले हुए
मगर बसा है संग ही नज़र में शिल्पकार की
waah..bahut achhi ghazal hui hai Seema ji…badhai
Aatishindori ji bhut bhut abhaar shukriya
Kaanha ji shukriya ji
Dinesh ji aanhaari hu
Anaam ji shukriya
Swapnil ji dil se shukriyaa aanhar
imraan husain ji aabhaar
2alok misra ji aabhaari hu
नज़र के वास्ते हज़ार फूल हैं खिले हुए
मगर बसा है संग ही नज़र में शिल्पकार की
Achhi Ghazal Hui hai Seema Ji… Bahut bahut badhai…
bahut achhii gazal hui hai Seema ji …
kai sher purasar hain
dili daad qubool keejiye
जिसे मैं तोड़ कर नदी में फेंक आई थी कभी
अभी तलक झनक झनक है दिल में उस सितार की
Subhan Allah….Behtareen
badhiya ghazal hui hai seema ji… shilpkar ka prayog bahut pasand aaya
जिसे मैं तोड़ कर नदी में फेंक आई थी कभी
अभी तलक झनक झनक है दिल में उस सितार की
wahhh wahhh
dili daad qubul kijiye
Seema ji
Bahut khoobsoorat gazal kahi hae aapne. Daad qubool karein
Pooja