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T-22/37 क्यों छिपाते हो किधर जाना है-बलवान सिंह “आज़र”

क्यों छिपाते हो किधर जाना है
दश्त से कह दो के घर जाना है

मुझमें भी पहले उठेंगे तूफ़ां
फिर ख़मोशी को पसर जाना है

उम्र भर काम वही आएगा
आदमी ने जो हुनर जाना है

ख़ाक तो ख़ाक में मिल जाएगी
ख़ाक को उड़के किधर जाना है

उसकी नादानी तो देखो आज़र
फिर से दीवार को दर जाना है

बलवान सिंह “आज़र” 08059814123

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8 comments on “T-22/37 क्यों छिपाते हो किधर जाना है-बलवान सिंह “आज़र”

  1. दाद देने वाले आप सभी दोस्तों का दिल से शुक्रिया

  2. क्यों छिपाते हो किधर जाना है
    दश्त से कह दो के घर जाना है
    गौर कीजिये क्या से क्या हो जाता है
    पत्थर इक दिन आईना हो जाता है
    प्रेम गली से वापस आ कर मत कहिये
    ऐसा होता है वैसा हो जाता है
    इब्तिदाये इश्क़ मे ही उल्फत आजमाने मे सरगर्म आशिक ठंडे पड जाते हैं किसी क़ैस के ही बूते की होती है सहरा नवर्दी !!! –इसलिये मतले का आशय एक दिलचस्प सच की ओर इशारा कर रहा है और कहा बडी तबीयत से है कि क्यों छिपाते हो किधर जाना है ..!!!! वाह !!
    मुझमें भी पहले उठेंगे तूफ़ां
    फिर ख़मोशी को पसर जाना है
    ये भी सच है !!! सोडा वाटर जैसे ज्वार हममे बहुत उठते हैं लेकिन सवाल ये है वो कौन सा जुनून है जो तादेर काइम रहता है क्योंकि किसी इश्क किसी इंकलाब का बाइस यही जुनून हो सकता है !!! अच्छा शेर कहा है !!!
    उसकी नादानी तो देखो आज़र
    फिर से दीवार को दर जाना है
    ऐसा हो जाता है नादानी में भी और परवान चढी दानाई में भी !!!
    बलवान सिंह “आज़र” साहब !! आपने कम शेर कहे लेकिन अच्छे कहे !! गज़ल के लिये मुबारकबाद कुबूल कीजिये –मयंक

  3. badhiya gazal huii hai bhai

    dili daad qubul keejiye

    Alok

  4. Bahut hi achhi gazal hui hai balwaan sahab…matla kafi khoobsurat ban pada hai….dheron daad…

  5. खूब अच्छी ग़ज़ल हुई है आज़र साहब।
    बधाई स्वीकार करें।
    सादर
    पूजा

  6. बहुत पुरअसर अश्‍आर हैं आज़र भाई। वाह…वाह…। बहुत खूब।

  7. क्यों छिपाते हो किधर जाना है
    दश्त से कह दो के घर जाना है…

    Achhi ghazal ke liye badhai
    -Kanha

  8. kam lekin purasar ashaar hain aazar sahab… matla behad pasand aaya… daad qubulen

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