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T-22/22 और क्या फूल को कर जाना है-गजेन्द्र श्रोत्रिय
और क्या फूल को कर जाना है बस महक दे के बिखर जाना है जिस्म को छोड़ यहीं पर इक दिन लौट के रूह को घर जाना है वक़्त चूहे सा पड़ा है पीछे उम्रे-फ़ानी को कुतर जाना है वो ज़मानों में रहेगा ज़िंदा जिसने मिटन…