ख़ुद को यकजा किये घर जाना है
गिर के बिस्तर पे बिखर जाना है
अब तलक पार किया करते थे
अबके दरिया में उतर जाना है
पाँव डाले हैं नदी में तुमने
अब समंदर भी संवर जाना है
मेरे हक़ में थी गवाही मेरी
अब के मुझ को भी मुकर जाना है
ख़ाली ख़ाली से सुरों को, मेरी
आख़िरी आह से भर जाना है
और क्या है मिरा तकमीले-सफ़र
उसकी आहट से गुज़र जाना है
हादसा हो कोई चौराहे पे जो
मुझ को बतलाये किधर जाना है
घर में आना है मुझे और घर को
मेरी तन्हाई से भर जाना है
हम ही खीचेंगे नई हद आगे
‘आज हर हद से गुज़र जाना है’
छोड़ना है तिरी आवाज़ का हाथ
गिर के ख़ामोशी में मर जाना है
हमने जाना है तुझे दरिया सा
तेरी बातों को भंवर जाना है
तेरी दस्तक ने छुआ है दर को
पल में ये घर भी संवर जाना है
स्वप्निल तिवारी ‘आतिश’ 08879464730
अब तलक पार किया करते थे
अबके दरिया में उतर जाना है
पाँव डाले हैं नदी में तुमने
अब समंदर भी संवर जाना है………..वाह भाई क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है दिली दाद
इतने अच्छे अच्छे शायरों से दाद वसूलने के बाद मेरी भी बेसाख्ता निकली वाह आप तक पंहुचे.. घर में आना है मुझे और घर को मेरी तन्हाई से भर जाना है.. और छोड़ना है तिरी आवाज़ का हाथ, गिर के ख़ामोशी में मर जाना है..और..और.. जीते रहो मेरे भाई!
bahut bahut shukriya sir..bas kisi tarah kuch she’r ho gaye…
bhaut khoobsurat gazal swapnil
yogesh dhyani
yogesh bahut bahut shukriyaa….:)
ख़ुद को यकजा किये घर जाना है
गिर के बिस्तर पे बिखर जाना है
अब तलक पार किया करते थे
अबके दरिया में उतर जाना है
मेरे हक़ में थी गवाही मेरी
अब के मुझ को भी मुकर जाना है
छोड़ना है तिरी आवाज़ का हाथ
गिर के ख़ामोशी में मर जाना है
वाह …..बहुत ही खूबसुरत ग़ज़ल हुई है दादा, हमेशा की तरह….
bahut shukriya bimal… aapki ghazal ka bhi intezar hai… 🙂
स्वप्निल भैय्या
छोड़ना है तिरी आवाज़ का हाथ
गिर के ख़ामोशी में मर जाना है
इस एक शेर से ही मुशायरा मुकम्मल हो गया मेरे लिए ,
बाकी और क्या कहूँ ?
आपकी शायरी अब सिर्फ़ बैठ के निहारी जा सकती है , तारीफ़ करने लायक मैं नहीं हूँ 🙂
shukirya dinesh.. muhabbat hai tumhari bhai….
एक और उम्ददा ग़ज़ल हमेशा की तरह। क्या खूब।।।।।
सादर
नवनीत
बहुत शुक्रिया नवनीत भाई….
ख़ुद को यकजा किये घर जाना है
गिर के बिस्तर पे बिखर जाना है
अब तलक पार किया करते थे
अबके दरिया में उतर जाना है
पाँव डाले हैं नदी में तुमने
अब समंदर भी संवर जाना है
मेरे हक़ में थी गवाही मेरी
अब के मुझ को भी मुकर जाना है
ख़ाली ख़ाली से सुरों को, मेरी
आख़िरी आह से भर जाना ह
छोड़ना है तिरी आवाज़ का हाथ
गिर के ख़ामोशी में मर जाना है
Waah waahh waaahh
kya kahun ..Mayank bhaiya ne pahle hi bahut kuchh kah diya
bala ki khoobsoorat gazal hui bhaiya
dili mubarqbad
शुक्रिया प्यारे तुम्हारी ग़ज़ल का इंतज़ार है….
क्या कहने
उम्दा ग़ज़ल है स्वप्निल तिवारी जी….वाह
मतला भी ख़ूब है…
बहुत शुक्रिया गोविन्द गुलशन साहब… 🙂
ख़ुद को यकजा किये घर जाना है
गिर के बिस्तर पे बिखर जाना है
जाती है धूप उजले परों को समेट के
ज़ख़्मो को अब गिनूँगा मैं बिस्तर पे लेट के –शिकेब
जैसी बात है इस शेर में !!! और बतौर मतला बेहद सुन्दर शेर है ये !!
अब तलक पार किया करते थे
अबके दरिया में उतर जाना है
बात से बात निकालना एक हुनर है !!! इसी बात पर एक शेर
बुझी न प्यास समन्दर तेरे शिनावर की
जो खुद मे डूब गया उसको काइनात मिली –मयंक
पाँव डाले हैं नदी में तुमने
अब समंदर भी संवर जाना है
दादा ने इस के अव्वल मिसरे पर पहले भी शेर कहा है वो रूमान का शेर था –स्वप्निल आपके इस शेर मे ख्याल की वुस अत दूर तलक गई है !! वाह !!!
मेरे हक़ में थी गवाही मेरी
अब के मुझ को भी मुकर जाना है
बहुत खूब जितनी तारीफ की जाय कम है !!इफ्तिख़ार आरिफ का एक शेर है — ये रोशनी के त आक्कुब मे भागता हुआ दिन
जो थक गया हो तो अब उसको मुख़्तसर कर दे –इ आ
ख़ाली ख़ाली से सुरों को, मेरी
आख़िरी आह से भर जाना है
पीडा की सरपरस्ती की बात है और क्या कहा जाय महादेवी वर्मा और प्रसाद जी ने इस रस को बहुत बहुत गरिमा दी है हिन्दी साहित्य में !!!
और क्या है मिरा तकमीले-सफ़र
उसकी आहट से गुज़र जाना है
स्वप्निल मेरे भाई ख्याल मेरे भी जेहन में था –लेकिन अब रास्ता बदलूँगा आप्ने बहुत उम्दा कहा है !!!
हादसा हो कोई चौराहे पे जो
मुझ को बतलाये किधर जाना है
हादसे ही अब हमारी दिशा तय करते हैं !!!
घर में आना है मुझे और घर को
मेरी तन्हाई से भर जाना है
शेर के शिल्प का जवाब नही !!! वाह दाद दाद !!
हम ही खीचेंगे नई हद आगे
‘आज हर हद से गुज़र जाना है’
कामयाब गिरह !! और माअनी भी बेहतरीन पिरोये हैं !!! आपके तईं सच भी है ये शेर !!!
छोड़ना है तिरी आवाज़ का हाथ
गिर के ख़ामोशी में मर जाना है
खुदकुशी के कई रंग हैं लेकिन स्वप्निल के अशार मे हताशा भी धनक रंग मिलती है बेशक !!!!
हमने जाना है तुझे दरिया सा
तेरी बातों को भंवर जाना है
मुझे सबसे अपीलिंग शेर यही लगा गहरा और तहदार !!! तालियाँ तालियाँ
तेरी दस्तक ने छुआ है दर को
पल में ये घर भी संवर जाना है
मुबारक कि कोई ऐसा ज़िन्दगी मे आया !!! और सबके जीवन मे आये जिसकी दस्तक से ज़िन्दगी संवर जाये !!!
स्वप्निल !!!!! मुझे आप पर नाज़ है —जीते रहिये !!! –मयंक
शुक्रिया भैया.. आपका तफ़सीली बयान तसल्ली देता है के शायद कुछ कह लिया है… बेहद शुक्रिया…
पाँव डाले हैं नदी में तुमने
अब समंदर भी संवर जाना है
मेरे हक़ में थी गवाही मेरी
अब के मुझ को भी मुकर जाना है
ख़ाली ख़ाली से सुरों को, मेरी
आख़िरी आह से भर जाना है
क्या बात है स्वप्निल सर ,काफियों की बौछार कर दी आपने तो ,एक से बढकर एक शेर ,,वा ….ह ….मेरे हक में थी गवाही मेरी ,,,अबके मुझको भी मुकर जाना है …बेहद कामयाब शेर है ….अमर हो गया समझो |ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर बधाई |
khurshid sahab behad shukriya aapka
पाँव डाले हैं नदी में तुमने
अब समंदर भी संवर जाना है
घर में आना है मुझे और घर को
मेरी तन्हाई से भर जाना है
वाह.. वाह… एक एक शेर खूबसूरत कहा है भाई..
बहुत मुबारकबाद !!
behad shukriya ashish ji
स्वप्निल भाई…
खाली खाली से सुरों को मेरी…
क्या खूबसूरत शे’र कहा है.
जितनी तारीफ़ की जाए कम है.
poori ghazal ke liye mubaarak.
bakul bhai..behad shukriya
अब तलक पार किया करते थे
अबके दरिया में उतर जाना है
पाँव डाले हैं नदी में तुमने
अब समंदर भी संवर जाना है
मेरे हक़ में थी गवाही मेरी
अब के मुझ को भी मुकर जाना ह
waah wahh .kya behtreen ghazal hui hai dada…pranam
-kanha
bahut bahut shukriya kanha
Waaahhhhhh waaaahhhhhh
BAhut achi gazal hui dada
DIli daad kubul kijiye
SAdar
IMran
bahut bahut shukriya imran…
Swapnil bhai ummid ke mutabik ghazal hui hai.. maza aa gya..
ye sher to kamaal hain..
मेरे हक़ में थी गवाही मेरी
अब के मुझ को भी मुकर जाना है
घर में आना है मुझे और घर को
मेरी तन्हाई से भर जाना है
छोड़ना है तिरी आवाज़ का हाथ
गिर के ख़ामोशी में मर जाना है
waaaaaah!!
aasif bhai bahut bahut shukriya,,,
दादा बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है।
छोड़ना है तेरी आवाज़ का साथ….
मेरे हक़ में थी गवाही मेरी…
हम ही खीचेंगे….ये शेर ख़ास तौर पे पसंद आये।
यूं पूरी ग़ज़ल साथ लिए जा रही हूँ।
दिली दाद क़ुबूल करें।
सादर
पूजा
bahut shukriya pooja ji….