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T-21/21 जहाँ पे होने थे बच्चों के क़हक़हे रौशन-भुवन निस्तेज नेपाली

जहाँ पे होने थे बच्चों के क़हक़हे रौशन
वहां पे किसने किये हैं ये मर्सिये रौशन

चराग़ उसने किये हैं नपे-तुले रौशन
मजाल क्या है कि हो जायें हाशिये रौशन

फ़लक पे चाँद-सितारे न हो भले रौशन
‘कलम संभाल अँधेरे को जो लिखे रौशन’

मैं हल अँधेरे में ही ढूँढ लूँ मगर फिर भी
मिरे फ़िराक में रहते हैं मसअले रौशन

कुरेदता है न जाने ये वक़्त क्यों इतना
कि घाव पिछली रुतों के भी हो चुके रौशन

मैं एक पेड़ था तन्हा अँधेरी रातों में
हरेक शाख़ से कितने चराग़ थे रौशन

मैं इस उम्मीद में इस बज़्म में चला आया
मुझे मिलेंगे यहाँ कुछ तो मश्विरे रौशन

चलो कि साथ में जुगनू थे ये ही काफ़ी था
हमारे वास्ते कब ये चिराग़ थे रौशन

हमारी कोशिशें भरपूर थीं वो पास आयें
ये और बात सदा फ़ासले रहे रौशन

किसी की ज़िद है कि तारीक को कहें कुछ और
है मशविरा इसे कर देंगे आज से रौशन

लहूलुहान किया सच को कुछ सवालों ने
कि ज़र्रे ज़र्रे पे जिनके जवाब थे रौशन

यही तरीक़ा है जग में सुकूँ बढ़ाने का
कहीं अँधेरा रहे पर हों मैकदे रौशन

दिये जलाइये घर आने की उमीद तो हो
न हो उमीद तो होंगे मुग़ालते रौशन

बुझा बुझा हुआ चेहरा है इनका सदियों से
वो लोग कैसे करेंगे ये आईने रौशन

अगर न बढ़ते जो सूरज को छूने सम्पाती
ज़हाज़ होते न यूँ आसमान पे रौशन

भुवन निस्तेज नेपाली 00977-9848513915

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10 comments on “T-21/21 जहाँ पे होने थे बच्चों के क़हक़हे रौशन-भुवन निस्तेज नेपाली

  1. Puri ki puri ghazal behad umdaa hai Bhuwan sahab ..waahh
    daad
    -kanha

    • आदरणीय भाई प्रखर मालवीय ‘कान्हा’ आपके द्वारा उत्साहवर्धन से मुझे ऊर्जा प्राप्त हुई है….धन्यवाद !

  2. भाई क्या ही कमाल का काम है, बहुत ख़ूब। आप का हल और मसअले वाला शेर पढ़ कर अपना डायरी में लिखा हुआ शेर याद आ गया

    मुद्दओं के खेत की क़िस्मत में हल थे ही नहीं
    क़ाफ़िलों के क़ाफ़िले बस मसअले बनते रहे

    बढ़िया ग़ज़ल के लिये दाद हाज़िर है

    • आदरणीय नवीन चतुर्वेदी साहब बेहद शुक्रिया…

  3. चराग़ उसने किये हैं नपे-तुले रौशन
    मजाल क्या है कि हो जायें हाशिये रौशन
    ये उन लोगों का स्केच है जो रोशनी को लकीरों मे कैद करने की सिफत रखते हैं !! गो कि ऐसे लोग चेतना और उमीदों का ह्रास करते हैं !! नये आयाम की तफ़्तीश की गई है शेर ने !!!
    फ़लक पे चाँद-सितारे न हो भले रौशन
    ‘कलम संभाल अँधेरे को जो लिखे रौशन’
    जहाँ न पहुंचे रवि वहाँ पहुंचे कवि –इसलिये बडा ही खूबसूरत ख्याल है !!!
    मैं हल अँधेरे में ही ढूँढ लूँ मगर फिर भी
    मिरे फ़िराक में रहते हैं मसअले रौशन
    दाद इस शेर पर !!इसके पर्फेक्शन पर !!!
    कुरेदता है न जाने ये वक़्त क्यों इतना
    कि घाव पिछली रुतों के भी हो चुके रौशन
    अव्वल मिसरे की गढन देखते बनती है !!! और शेर भी सुन्दर कहा है !!! वक्त बेदाद है !! था और रहेगा – हस्स्सस तबीयत वालो के लिये तो पाबन्दी से !!! शाइर की सिरिश्त को दाद !!!
    मैं एक पेड़ था तन्हा अँधेरी रातों में
    हरेक शाख़ से कितने चराग़ थे रौशन
    ख्याल की वुस अत चाहिये शेर मे मंज़र की इंतेहा तलाश करने के लिये !! लेकिन अश्जार की जडो की तरह ही उसके जर्फ की रसाई कहाँ तक है—यानी आज जो किरदार तन्हा है उसकी सामाजिक देन कितनी विराट है इस ओर शेर इंगित कर रहा है !!
    मैं इस उम्मीद में इस बज़्म में चला आया
    मुझे मिलेंगे यहाँ कुछ तो मश्विरे रौशन
    तबाते तल्ख़ ने हरचन्द सम्झाया मुझे
    दिलज़्रु मगर दिल था उसी महफिल मे ले आया मुझे !!
    लेकिन मुतमईन रहे भुवन साहब !! इस बज़्म मे आप मयूस नही होंगे !!
    चलो कि साथ में जुगनू थे ये ही काफ़ी था
    हमारे वास्ते कब ये चिराग़ थे रौशन
    शबे सफर थी कबा तीरगी की ओढे हुये
    कही कही पे कोई रोशनी का धब्बा था –शिकेब जलाली
    हमारी कोशिशें भरपूर थीं वो पास आयें
    ये और बात सदा फ़ासले रहे रौशन
    फिक्र कर तामीरे दिल की वो यही आ जायेगा
    बन गया जिस दिन मकाँ उस दिन मक़ीं आ जायेगा !!
    लहूलुहान किया सच को कुछ सवालों ने
    कि ज़र्रे ज़र्रे पे जिनके जवाब थे रौशन
    ईसा, मंसूर ,सुकरात –ये फेहरिस्त लम्बी है !!!
    यही तरीक़ा है जग में सुकूँ बढ़ाने का
    कहीं अँधेरा रहे पर हों मैकदे रौशन
    सहीह जगह आ गये आप !!! मंज़िले मक्सूद तो अपनी यही है !!!
    दिये जलाइये घर आने की उमीद तो हो
    न हो उमीद तो होंगे मुग़ालते रौशन
    क्या खूब शेर कहा है और काफिया चमक रहा है !!!!
    बुझा बुझा हुआ चेहरा है इनका सदियों से
    वो लोग कैसे करेंगे ये आईने रौशन
    इस सवाल का जवाब नहीं !!!
    अगर न बढ़ते जो सूरज को छूने सम्पाती
    ज़हाज़ होते न यूँ आसमान पे रौशन
    रेगिस्तान पर पहले बादलो को झुलसना पडता है लेकिन ये शहादत ज़रूरी है !!! आज फलक तो कल सूरज भी सर होगा !! सम्पाती का ख्याल बहुत नावेल्ती लिये हुये है !!!
    भुवन निस्तेज नेपाली साहब !! पूरी ग़ज़ल एक रौशन गुफतगू है !!! आपके कलम को सलाम –मयंक

  4. Meri firaq mein rahte hein masale rousan…wah Bhuwan ji..bahut khoo . Umda gazal.. daad kubool karein.

    • मेरी कोशिस को सराहने का शुक्रिया मोहतरमा…

  5. kya kahne Bhuwan nistej sahab
    tamaam gazal umda hai
    kaiii sher khoobsoorat hain
    dher saari daad

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