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ज़लील हो के तो जन्नत से मैं नहीं आया-दिलावर फ़िगार

ज़लील हो के तो जन्नत से मैं नहीं आया
ख़ुदा ने भेजा है ज़िल्लत से मैं नहीं आया

मैं उस इलाक़े से आया हूँ है जो मर्दुमख़ेज़
दिलाई लामा के तिब्बत से मैं नहीं आया

मुशाइरे में सुनूँ कैसे सुब्ह तक ग़ज़लें
कि घर को छोड़ के फ़ुर्सत से मैं नहीं आया

इक अस्पताल में आया कोई ये कहती थी
ख़ुदा का शुक्र है सूरत से मैं नहीं आया

अभी हुदूदे-अदालत में कैसे दाख़िल होऊं
कि इंतिज़ामे-ज़मानत से मैं नहीं आया

तुम्हारे घर में मैं कूदा ज़रूर हूँ लेकिन
विसाल-उसाल की नीयत से मैं नहीं आया

दिलावर फ़िगार

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4 comments on “ज़लील हो के तो जन्नत से मैं नहीं आया-दिलावर फ़िगार

  1. इक अस्पताल में आया कोई ये कहती थी
    ख़ुदा का शुक्र है सूरत से मैं नहीं आया

    तुम्हारे घर में मैं कूदा ज़रूर हूँ लेकिन
    विसाल-उसाल की नीयत से मैं नहीं आया

    अरे वाह !

  2. ज़लील हो के तो जन्नत से मैं नहीं आया
    ख़ुदा ने भेजा है ज़िल्लत से मैं नहीं आया
    आदम तो बेआबरू हो कर जन्नत से निकाला गया था लेकिन आदमजात इस पर मुंकिर है !! ऐसे शेर सुन कर माथे के बल सपाट हो जाते है !!होठों के किनारे कान तक चले जाते हैं और लोग आपके सभी दाँत गिन सकते हैं !!! आपकी सूरत और मिजाज़ मे इतनी तब्दीली कर सकने की कूवत और कितने शाइरों मे है ??!!!
    तुम्हारे घर में मैं कूदा ज़रूर हूँ लेकिन
    विसाल-उसाल की नीयत से मैं नहीं आया
    आये चोरी की नीयत से हैं लेकिन दिल या बदन चुराने नही आये !!! हा SSSSSSSSSSSss!!!!
    मयंक

  3. तुम्हारे घर में मैं कूदा ज़रूर हूँ लेकिन
    विसाल-उसाल की नीयत से मैं नहीं आया
    hahahaha.. hadd hi hai…kamaal

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