करके वादा न कभी कोई निभाया मुझसे
मेरे अपनों ने किया क्यों ये दिखावा मुझसे
इतना झुलसाया है उम्मीद के सूरज ने मुझे
अब तो साये का भी वाजिब है तक़ाज़ा मुझसे
उसकी आँखों में था बेनाम सा मौसम कैसा
कोई उम्मीद न वादा न ही शिकवा मुझसे
जहाँ यादों का परिंदा भी न पर मार सके
दिल ये मांगे है कोई ऐसा ठिकाना मुझसे
क़ैद से जिसकी निकल पाया न मै आज तलक
वो ही पूछे हैं रिहाई का तरीक़ा मुझसे
जब से देखा है उजालों ने बरहना मुझको
तब से रातें भी मिरी करती हैं पर्दा मुझसे
खींचती मुझसे रही हाथ ये ख़ुशियां हरदम
और ये ग़म हैं कि जोड़े रहें रिश्ता मुझसे
ठोकरों ने ही तो अब तक है संभाला मुझको
दौरे-ग़ुरबत में तो रस्ता भी ख़फा था मुझसे
तयशुदा राह का राही तो मै हो जाऊं मगर
कोई तो हो जो कहे, है ये ज़माना मुझसे
मेरी आँखों पे अभी पर्दा चढ़ा रहने दें
दफ़अतन होगा न बर्दाश्त उजाला मुझसे
आजकल ख़ुद से नहीं बनती है ख़ुद की मेरी
‘साहिबो उठ गया क्या मेरा भरोसा मुझसे”
बिमलेंदु कुमार 09711381945
Behad khoobsurat aur purasar ghazal kahi hai bimlendu bhai!! behad mubarkbaad!!
इतना झुलसाया है उम्मीद के सूरज ने मुझे
अब तो साये का भी वाजिब है तक़ाज़ा मुझसे
वाह-वाह
करके वादा न कभी कोई निभाया मुझसे
मेरे अपनों ने किया क्यों ये दिखावा मुझसे
सानी मिसरा तो इतना रवाँ है कि तरही मिसरा बन सकता है शेर भी अच्छा कहा है !!
इतना झुलसाया है उम्मीद के सूरज ने मुझे
अब तो साये का भी वाजिब है तक़ाज़ा मुझसे
ऊला मिसरा भी बेहतरीन गढन का है
उसकी आँखों में था बेनाम सा मौसम कैसा
कोई उम्मीद न वादा न ही शिकवा मुझसे
इस शेर पर भरपूर दाद !! मुकम्मल मंज़र है तर्क ए तअल्लुक का !!
जहाँ यादों का परिंदा भी न पर मार सके
दिल ये मांगे है कोई ऐसा ठिकाना मुझसे
रहिये अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो ……(ग़ालिब ) जैसी बात है !!
क़ैद से जिसकी निकल पाया न मै आज तलक
वो ही पूछे हैं रिहाई का तरीक़ा मुझसे
तलाक जिस्मो के होते है और रिश्ते काले पड जाते है.. सच है !!!
जब से देखा है उजालों ने बरहना मुझको
तब से रातें भी मिरी करती हैं पर्दा मुझसे
बहुत प्यारा शेर कहा है कहन भी नई है और मंज़र स्तब्ध कर देने वाला है !!
ठोकरों ने ही तो अब तक है संभाला मुझको
दौरे-ग़ुरबत में तो रस्ता भी ख़फा था मुझसे
इस अन्धेरे मे तो ठोकर ही उजाला देगी (निदा)
तयशुदा राह का राही तो मै हो जाऊं मगर
कोई तो हो जो कहे, है ये ज़माना मुझसे
ज़मना हमसे है हम ज़माने से नहीं –जिगर की और जिगर वालों की बात है !!
मेरी आँखों पे अभी पर्दा चढ़ा रहने दें
दफ़अतन होगा न बर्दाश्त उजाला मुझसे
राबिन्सन क्रूसो जज़ीरे पर रहते रहते – आदिम हो गया था !!! खूब शेर कहा है !!!
आजकल ख़ुद से नहीं बनती है ख़ुद की मेरी
‘साहिबो उठ गया क्या मेरा भरोसा मुझसे”
गिरह अच्छी है !! बिमलेन्दु भाई !! इस गज़ल की जितनी प्रशंसा की जाय कम होगी !!! बहद मजबूद और पुरअसर बयान है बरसों रियाज़ करने के बाद भी ऐसी गज़ल कहना काबिले तारीफ ही होगा फिर आप के सामने तो बहुत विशाल भविष्य है !! आगे आप और मोजिज़ा दिखायेंगे बिलाशक –बहुत बहुत बधाई –मयंक
उसकी आँखों में था बेनाम सा मौसम कैसा
कोई उम्मीद न वादा न ही शिकवा मुझसे
WAAH बेनाम सा मौसम KYA KAHNE JANAAB ”’ MUBAARAKBAAD ”’
Alok bhai…..aapki.agli gazal.ka intezaar hai…
ashaar kee chamak mashaqqat aur tazrube kaa bharpoor bayaan kar rahee hai. shayar ko bahut bahut badhai.
इतना झुलसाया है उम्मीद के सूरज ने मुझे
अब तो साये का भी वाजिब है तक़ाज़ा मुझसे
उसकी आँखों में था बेनाम सा मौसम कैसा
कोई उम्मीद न वादा न ही शिकवा मुझसे
जब से देखा है उजालों ने बरहना मुझको
तब से रातें भी मिरी करती हैं पर्दा मुझसे
आ. बिमलेंदु सा. तमाम ग़ज़ल खुबसूरत है ,ये अशहार तो नगीने है जो सदियों तक जगमगायेगे
सादर
waah…kya khub….”.inexplicable”.
Dr.Nivedita.
Bimal bhaai kya kahne! Aap ab rang me aa rahe hain! Achhi ghazal par dil se daad lijiye!
Thanks saurabh dada….apse comments pakar dil khush ho jata hai….
इतना झुलसाया है उम्मीद के सूरज ने मुझे
अब तो साये का भी वाजिब है तक़ाज़ा मुझसे
बिमलेंदु ये तो बड़ा शेर कह गये. वाह-वाह
उसकी आँखों में था बेनाम सा मौसम कैसा
कोई उम्मीद न वादा न ही शिकवा मुझसे
अच्छी शायरी के लिये अच्छे शब्दों का चयन ज़रूरी शर्त है जो आपके कलाम में भरपूर है. बेनाम सा मौसम, यादों का परिंदा, उजालों का बरहना देखना, रातों का पर्दा करना, गिरह तो ज़बरदस्त है ही. वाह-वाह बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद
Pranam dada…..meri khali jholi yun hi apke aashirvaad se bharti rahe…..
waah waah bimal…. poori ghazal manjhi hui hai… behad khubsurat… kai she’r behtareen hue hain…
उसकी आँखों में था बेनाम सा मौसम कैसा
कोई उम्मीद न वादा न ही शिकवा मुझसे
aur is she’r pr to aapka haath chum lene ka ji chahta hai… bahut bahut bahut umda mere bhai… bahut she’r..dheron daad….
Dada….yun hi mera hausla badhate rahen….love u…
Bahut khoob Bimal Bhai. .Kya badhiya ghazal Kahi hai Apne. .
उसकी आँखों में था बेनाम सा मौसम कैसा
कोई उम्मीद न वादा न ही शिकवा मुझसे
जहाँ यादों का परिंदा भी न पर मार सके
दिल ये मांगे है कोई ऐसा ठिकाना मुझसे
क़ैद से जिसकी निकल पाया न मै आज तलक
वो ही पूछे हैं रिहाई का तरीक़ा मुझस
..lajawab. .daad qubule’n sahab
-Kanha
Nawazish kanha bhai….
Kya kahne Bimal bhaii
Bahut umda gazal huii h
Waahh waah
Alok