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T-18/15 यकायक रास्तों में अँधेरा हो गया है-नूरुद्दीन नूर

यकायक रास्तों में अँधेरा हो गया है
के इन्सां भीड़ में भी अकेला हो गया है

बशर के दौश पर हैं ज़रुरत की सलीबें
कमर के साथ सर भी ख़मीदा हो गया है

अचानक आगया है सवा नेज़े पे सूरज
“अँधेरा तिलमिला कर सवेरा हो गया हैi”

हुआ तब्दील जब से रवैया दोस्तों का
मिरा लहजा भी तब से कसैला हो गया है

किसे इलज़ाम दें अब किसे दुखड़ा सुनायें
हमारा राहबर ख़ुद लुटेरा हो गया है

बहुत हैरतज़दा है ख़ुदा भी आसमां पर
ख़ुदा अब आदमी का जो पैसा हो गया है

हमारे शहर में अब नये मक़्तल खुलेंगे
सुना है नूर क़ातिल मसीहा हो गया है

नूरुद्दीन नूर 09663435838

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7 comments on “T-18/15 यकायक रास्तों में अँधेरा हो गया है-नूरुद्दीन नूर

  1. puri ghazal behad umdaa…
    ye she’r khaas tour pe pasand aaya

    हुआ तब्दील जब से रवैया दोस्तों का
    मिरा लहजा भी तब से कसैला हो गया ह…daad qubule’n

    -Kanha

  2. खूबसूरत अश’आर हुए हैं नूर साहब। दाद कुबूल करें।

  3. KHOOBSOORAT GHAZAL HUYI HAI JNB…
    KHUSOOSAN…BASHAR Ke DOSH PAR HAIn…kya kahne..wahhhhh
    dr.azam

  4. बशर के दौश पर हैं ज़रुरत की सलीबें
    कमर के साथ सर भी ख़मीदा हो गया है

    अचानक आगया है सवा नेज़े पे सूरज
    “अँधेरा तिलमिला कर सवेरा हो गया हैi”

    हुआ तब्दील जब से रवैया दोस्तों का
    मिरा लहजा भी तब से कसैला हो गया है

    किसे इलज़ाम दें अब किसे दुखड़ा सुनायें
    हमारा राहबर ख़ुद लुटेरा हो गया है
    आदरणीय नूर सा. बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है | अशहार की शेरियत नायाब है |बहुत बधाई
    सादर

  5. इश्तियारे तश्बीहे और कनाये .. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बावज़ूद गज़ल मंज़र से सिवा पसमंज़र पर ज़ियादा खिलती है और अरूज़ ए फिक्रो फन की कसौटी पर इस गज़ल की जितनी प्रशंसा की जाय कम होगी !! इस कहन से, पढने वाले मुतास्सिर हो सक्ते हैं और नहीं भी –लेकिन गज़ल के क्लासिक बिन्दुओं पर गज़ल सारी दाद की हकदार है
    यकायक रास्तों में अँधेरा हो गया है
    के इन्सां भीड़ में भी अकेला हो गया है
    मतले पर दाद !!
    बशर के दौश पर हैं ज़रुरत की सलीबें
    कमर के साथ सर भी ख़मीदा हो गया है
    दोश पर ज़रूरत की सलीबे और कमर के साथ सर का भी ख़मीदा होना – बहुत खूब !! मरहूम परवाज़ी साहब का शेर !!
    अना का बोझ भी रखा है मेरे शानो पर
    ये हाथ काँप रहा है सलाम करते हुये –अहमद कमाल परवाज़ी
    ये लोग झुक गये तहज़ीब के सबब वर्ना
    किसी ने दिल से कहाँ आपको सलाम किया – मयंक
    अचानक आगया है सवा नेज़े पे सूरज
    “अँधेरा तिलमिला कर सवेरा हो गया हैi”
    गिरह बहुत खूबसूरत है !! एक शेर अहमद फराज़ का — सिपाहे शाम के नेज़े पे आफताब का सर
    किस एहतिमाम से परवरदिगारे शब निकला -फराज़
    हुआ तब्दील जब से रवैया दोस्तों का
    मिरा लहजा भी तब से कसैला हो गया है
    गुफ़्तगू मे सियासत की बाते इस मुकाम पर लाती है –लेकिन ये मुकाम नही मरहला होता है इसे सर किया जा सकता है !!!
    किसे इलज़ाम दें अब किसे दुखड़ा सुनायें
    हमारा राहबर ख़ुद लुटेरा हो गया है
    चलता हूँ थोड़ी दूर हरिक तेज़ रौ के साथ // ओपहचानता नहीं हूँ अभी रहबर को मैं – गालिब का ये शेर आज आम हिन्दुतानी क शेर है !!
    बहुत हैरतज़दा है ख़ुदा भी आसमां पर
    ख़ुदा अब आदमी का जो पैसा हो गया है
    तस्लीम !!
    हमारे शहर में अब नये मक़्तल खुलेंगे
    सुना है नूर क़ातिल मसीहा हो गया है
    और ले जायेगा कहाँ गुलचीं
    सारे मक़्तल खुले हैं पहले ही
    नूरुद्दीन नूर साहब !!! गज़ल के लिये आपको बहुत बहुत बधाई !! –मयंक

  6. उम्‍दा। दाद …दाद..।

  7. बहुत हैरतज़दा है ख़ुदा भी आसमां पर
    ख़ुदा अब आदमी का जो पैसा हो गया है

    हमारे शहर में अब नये मक़्तल खुलेंगे
    सुना है नूर क़ातिल मसीहा हो गया है

    mubaraqbaad kabool ho noor sahab…

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