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सितम देखो कि जो खोटा नहीं है-प्रखर मालवीय ‘कान्हा’

सितम देखो कि जो खोटा नहीं है
चलन में बस वही सिक्का नहीं है

नमक ज़ख्मों पे अब मलता नहीं है
ये लगता है वो अब मेरा नहीं है

यहाँ पर सिलसिला है आंसुओं का
दिया घर में मिरे बुझता नहीं है

यही रिश्ता हमें जोड़े हुए है
कि दोनों का कोई अपना नहीं है

नये दिन में नये किरदार में हूँ
मिरा अपना कोई चेहरा नहीं है

मिरी क्या आरज़ू है क्या बताऊँ?
मिरा दिल मुझपे भी खुलता नहीं है

कभी हाथी, कभी घोड़ा बना मैं
खिलौने बिन मिरा बच्चा नहीं है

मिरे हाथोँ के ज़ख्मों की बदौलत
तिरी राहों में इक काँटा नहीं है

सफ़र में साथ हो.. गुज़रा ज़माना
थकन का फिर पता चलता नहीं है

मुझे शक है तिरी मौजूदगी पर
तू दिल में है मिरे अब या नहीं है

तिरी यादों को मैं इग्नोर कर दूँ
मगर ये दिल मिरी सुनता नहीं है

ग़ज़ल की फ़स्ल हो हर बार अच्छी
ये अब हर बार तो होना नहीं है

ज़रा सा वक़्त दो रिश्ते को ‘कान्हा’
ये धागा तो बहुत उलझा नहीं है

प्रखर मालवीय ‘कान्हा’ 07827350047-08057575552

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6 comments on “सितम देखो कि जो खोटा नहीं है-प्रखर मालवीय ‘कान्हा’

  1. bilkul aap hi ki tarah masoom aur pyari ghazal…..
    lagbhag sabhi sher achchhe hain lekin ye sher to ustadaana ho gaya hai
    यही रिश्ता हमें जोड़े हुए है
    कि दोनों का कोई अपना नहीं है..khoob taraqqi keejiye khush rahiye ..saamne hote to gale se laga leta..

  2. achchhi gazal, but diye ke n bujhne aur aansuon ka silisila hone ka tartamy samajh n paya!

    • bahut shukriya Siddhanath ji…
      यहाँ पर सिलसिला है आंसुओं का
      दिया घर में मिरे बुझता नहीं है

      Is she’r me’n ye hai ki mere ghar me’n maine ghum ka diya jala rakkha hai..aur mire aansoo use bujhne nahi’n dete..sadar
      -Kanha

  3. अच्छी ग़ज़ल हुई है प्रखर
    यही रिश्ता हमें जोड़े हुए है
    कि दोनों का कोई अपना नहीं है
    वाह वाह
    इग्नोर का प्रयोग भी अच्छा है
    इस प्यारी सी ग़ज़ल के लिए आपको ढेर सारी दाद

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