सितम देखो कि जो खोटा नहीं है
चलन में बस वही सिक्का नहीं है
नमक ज़ख्मों पे अब मलता नहीं है
ये लगता है वो अब मेरा नहीं है
यहाँ पर सिलसिला है आंसुओं का
दिया घर में मिरे बुझता नहीं है
यही रिश्ता हमें जोड़े हुए है
कि दोनों का कोई अपना नहीं है
नये दिन में नये किरदार में हूँ
मिरा अपना कोई चेहरा नहीं है
मिरी क्या आरज़ू है क्या बताऊँ?
मिरा दिल मुझपे भी खुलता नहीं है
कभी हाथी, कभी घोड़ा बना मैं
खिलौने बिन मिरा बच्चा नहीं है
मिरे हाथोँ के ज़ख्मों की बदौलत
तिरी राहों में इक काँटा नहीं है
सफ़र में साथ हो.. गुज़रा ज़माना
थकन का फिर पता चलता नहीं है
मुझे शक है तिरी मौजूदगी पर
तू दिल में है मिरे अब या नहीं है
तिरी यादों को मैं इग्नोर कर दूँ
मगर ये दिल मिरी सुनता नहीं है
ग़ज़ल की फ़स्ल हो हर बार अच्छी
ये अब हर बार तो होना नहीं है
ज़रा सा वक़्त दो रिश्ते को ‘कान्हा’
ये धागा तो बहुत उलझा नहीं है
प्रखर मालवीय ‘कान्हा’ 07827350047-08057575552
bilkul aap hi ki tarah masoom aur pyari ghazal…..
lagbhag sabhi sher achchhe hain lekin ye sher to ustadaana ho gaya hai
यही रिश्ता हमें जोड़े हुए है
कि दोनों का कोई अपना नहीं है..khoob taraqqi keejiye khush rahiye ..saamne hote to gale se laga leta..
Dada aashirvaad hai aap sabka bus…apne itna kah dia yu’n laga aap gale se laga ke peeth thapthapa rahe’n hain…thank u so much dada
sadar
-Kanha
achchhi gazal, but diye ke n bujhne aur aansuon ka silisila hone ka tartamy samajh n paya!
bahut shukriya Siddhanath ji…
यहाँ पर सिलसिला है आंसुओं का
दिया घर में मिरे बुझता नहीं है
Is she’r me’n ye hai ki mere ghar me’n maine ghum ka diya jala rakkha hai..aur mire aansoo use bujhne nahi’n dete..sadar
-Kanha
अच्छी ग़ज़ल हुई है प्रखर
यही रिश्ता हमें जोड़े हुए है
कि दोनों का कोई अपना नहीं है
वाह वाह
इग्नोर का प्रयोग भी अच्छा है
इस प्यारी सी ग़ज़ल के लिए आपको ढेर सारी दाद
Alok bhai bus apka sneh hai..bahut shukriya ..Aap sabse housla milta hai
_kanha