फ़लक है सुर्ख़ मगर आफ़ताब काला है
“अन्धेरा है कि तिरे शहर में उजाला है”
तमाम शहर का मंज़र ही अब निराला है
कोई है साँप, कोई साँप का निवाला है
शबे-सफ़र तो इसी आस पर बितानी है
अजल के मोड़ के आगे बहुत उजाला है.
जहाँ ख़ुलूस ने खायी शिकस्त दुनिया से
वहीं जुनून ने उठ कर मुझे सम्भाला है
बराहे तंज़ समंदर के दिल में उतरूंगा
किनारे बैठ के कंकर जभी उछाला है
ये उसका खौफ़ हो, जो हो , मुझे तो खदशा है
वो फिर से तूर का जलवा दिखाने वाला है
अज़ल आबाद की हदो में तवाफ़ कर नादाँ
तेरे मकान के दोनों दरों पे ताला है
मैं खो गया हूँ किसी ख़्वाब के तअक्कुब में
बस एक जिस्म मेरा आख़िरी हवाला है
ग़ज़ल शिकेब की, यूँ बस गई है आँखों में
ग़ज़ल कहूँ कि कहूँ, आँसुओं की माला है
मयंक कौन है ? ! ! ! वो पूछते हैं हैरत से
पर इस सवाल ने हमको तो मार डाला है
मयंक अवस्थी 08765213905
मयंक हर बार की तरह इस बार भी उम्दा ग़ज़ल हुई. बढ़िया काम, मुबारकबाद
दादा !! प्रणाम और आभार !!! –मयंक
ग़ज़ल शिकेब की, यूँ बस गई है आँखों में
ग़ज़ल कहूँ कि कहूँ, आँसुओं की माला है
waah dada, wah wah. makta kya kamaal ka hai. bahut bahut badhai. bahut umda
बिमलेन्दु भाई !! बहुत बहुत शुक्रिया !! –मयंक
क्या ख़ूब ग़ज़ल हुई है मयंक जी.…काला आफ़ताब क्या कहने गिरह बहुत अच्छी लगाई है बाक़ी सरे शेर भी बहुत ख़ूब .. बधाई
Rashmi sahaba !!! bahut bahut shukriya –regards -Mayank
बहुत खूब मयंक जी, किस शे’र की तारीफ़ करूँ किसको छोड़ूँ। हर शे’र दहाड़ रहा है। ढेरों दिली दाद कुबूल कीजिए
Hardik Abhar Dharmendra bhai !! -regards -Mayank
भरपूर ग़ज़ल हुई है सर!
मतले में गिरह को क्या ख़ूबसूरती से बाँधा गया है.’काला आफताब’! प्रयोग हैरत जगाता है,मगर सन्देश बखूबी छोड़ रहा है.
शबे-सफ़र तो इसी आस पर बितानी है
अजल के मोड़ के आगे बहुत उजाला है….क्या कहने!
शकेब की ग़ज़ल के बारे में जो आपने कहा मेरी भी वही सोच है..आंसुओं की माला!
मक्ता भी ख़ूब है! दिली दाद भैया!
saurabh bhai !! tahe dil se shukraguzaar hun –ujalat me kahe gaye sheron ko apaki muhabbat ne bahut raahat bakhsh di hai — mayank
तमाम शहर का दस्तूर अब निराला है
कोई है साँप, कोई साँप का निवाला है
आ.मयंक भाई सा.
मतले में ही गिरह को बख़ूबी से सजाया है आपने ,और हुस्ने मतला में गज़ब का रब्त और तरतीब देखने को मिलती है |शेरियत से संवारते हुए सादाबयानी को बड़े परिश्रम के साथ साधा गया है ,कमाल है वा…ह
शबे-सफ़र तो इसी आस पर बितानी है
अजल के मोड़ के आगे बहुत उजाला है.
मालिक अहले अदब की इस आस को कभी न तोड़े …आमीन
जहाँ ख़ुलूस ने खायी शिकस्त दुनिया से
वहीं जुनून ने उठ कर मुझे सम्भाला है
ख़ुलूस के हक़ में ग़ज़ल का यह जुनून अच्छे दौर की उम्मीद जगाता है
ग़ज़ल शिकेब की, यूँ बस गई है आँखों में
ग़ज़ल कहूँ कि कहूँ, आँसुओं की माला है
इस शेर में तखय्युल की परवाज़ और तसव्वुफ़ की पाकीज़गी लासानी है ,बहुत बहुत बधाई
मयंक कौन है ? ! ! ! वो पूछते हैं हैरत से
पर इस सवाल ने हमको तो मार डाला है
सच कहूं तो इस मक्ते ने हमको मार डाला है ,ढेरों दाद कबूल फरमाएं
सादर
Khursheed bhai !!! Ab Aap is portal ki zaroorat hain — behad khoobsoorat bayaan aur -talaash aur tafteesh karane vaalaa nasra jisaki zubaan bahut impress karati hai — meri tamaam duaayein aapake saath hai — bhagavaan aapako nirantar nai bulandiyan de — regards –mayank
शबे-सफ़र तो इसी आस पर बितानी है
अजल के मोड़ के आगे बहुत उजाला है.
जहाँ ख़ुलूस ने खायी शिकस्त दुनिया से
वहीं जुनून ने उठ कर मुझे सम्भाला है
ग़ज़ल शिकेब की, यूँ बस गई है आँखों में
ग़ज़ल कहूँ कि कहूँ, आँसुओं की माला है
Mayank Bhai ……………kya khoobsurat ghazal usse bhi khoobsurat ye ash’aar
kamaal ke hue ….dili daad Qubulein……….Nazir
nazir bahi !!! ye alfaaz mujhe kitani power dete hain — mere paas is izahaar ke liye alfaaz nahin hain — lekin Mayank agar kahin hai to sirf aur sirf is muhabbat ke sabab hai jo aapne aur aap jaise saathiyon me mujhe di hai — mayank
apki ghazal ka intezar rehta hai bhaiya.. ..kya khoob ash’aar hain. ..behad umdaa ghazal. ..
जहाँ ख़ुलूस ने खायी शिकस्त दुनिया से
वहीं जुनून ने उठ कर मुझे सम्भाला है…nihayat umdaa she’r. ..
मयंक कौन है ? ! ! ! वो पूछते हैं हैरत से
पर इस सवाल ने हमको तो मार डाला है…
masoom maqta ….daad qubule’n. …
-kanha
Praqkhar !!! Jeete rahiye aabaad rahiye !! is umra me aapaka bayaan jahaan hai wo beshatar shaairon ke liye sapana hotaa hai — bahut sundar suhabat aapako mili hai aur aur bahut damadaar ustaad — salaamat rahiye aur roz nai bulandiyon par pahunchaiye –mayank
bahut hu umda ghazal hui hai bhaiya…
शबे-सफर तो इसी आस पर बितानी है
अजल के मोड़ के आगे बहुत उजाला है.
जहाँ ख़ुलूस ने खाई शिकस्त दुनिया से
वहीं जुनून ने उठ कर मुझे सम्भाला है
ye do she’r to behad kamaal hue hain..waah waah..
Swapnil bahut ashwasti mili aapake bayaan se — mujhe bhi in dono ashaar se umeed thi ki ye musvviron ko achche lag sakate hain — tahe dil se shukriyaa –mayank