सहते सहते सच झूठा हो जाता है
परबत कांधे का हलका हो जाता है
डरते डरते कहना चाहा है जब भी
कहते कहते क्या से क्या हो जाता है
हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा
पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है
धीरे धीरे दुनिया रंग बदलती है
कल का मज़हब अब फ़ितना हो जाता है
ईश्वर को भी बहुतेरे दुःख हैं यारो
वो भी भक्तों से रुसवा हो जाता है
भीतर बहते दरिया मरते जाते हैं
धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है
पत्ता पत्ता “राज ” बग़ावत कर बैठे
जंगल का जंगल नंगा हो जाता है
राजमोहन चौहान 8085809050
wah wah wah, kya girah lagaai hai, kya kehne
अच्छी ग़ज़ल राजमोहन साब और विशेष कर इस शेर के तो क्या कहने
“डरते डरते कहना चाहा है जब भी
कहते कहते क्या से क्या हो जाता है”
पत्ता पत्ता “राज ” बग़ावत कर बैठे
जंगल का जंगल नंगा हो जाता है…
behatreen …daad kubul farmaaye’n
सहते सहते सच झूठा हो जाता है
परबत कांधे का हलका हो जाता है
डरते डरते कहना चाहा है जब भी
कहते कहते क्या से क्या हो जाता है
Zameeni Baat… Aise sher dil ko choo jaate hai aur girah bhi aapne bahut achhi baandhi hai… Bheetar behte dariya marte jaate hai… Umda gazal … Bahut mubarakbaad 🙂
This is what good people do. They make you feel important. thank you. sir. I am indebted.
हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा
पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है
भीतर बहते दरिया मरते जाते हैं
धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है
वाह उम्दा ग़ज़ल और क्या ख़ूब गिरह लगाई है बधाई …
सबा जी बहुत आभार। अभी सीख रहा हूँ। लफ्ज़ में आ कर बहुत हौसला मिला। आप सब का आभारी हूँ। धन्यवाद
चौहान साहब
हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा
पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है
सादा लफ़्ज़ों में कहा गया असरदार शेर !!
पवन जी आप को ह्रदय से धन्यवाद देता हूँ। हौसला बढ़ा है मेरा।
उम्दा ग़ज़ल है चौहान साहब! मुबारकबाद!
सौरभ जी ये hindi tool bahut dhokha deta hai. Aap se kya kahun? sach poocho to aap sab se seekh raha hun. Dhanyawad .
ईश्वर को भी बहुतेरे दुःख हैं यारो
वो भी भक्तों से रुसवा हो जाता है
हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा
पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है
भावों की खूबसूरती से लिखी ग़ज़ल
Mahendra Gupta ji, aap sab ka bahut hi shukriya. Main to kuchh kah bhi nahi pa raha hun. dhanywad .
डरते डरते कहना चाहा है जब भी
कहते कहते क्या से क्या हो जाता है
हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा
पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है
भीतर बहते दरिया मरते जाते हैं
धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है
kya khoob kahan hai, gazal ka pairahan aise foolon se hi singaar pata hai!
Aise hi mera man badhate rahen sir. main hindi wala hone ke karan kuchh complex to rakhta tha parantu yahan poori tarah apnatwa mila. Aabhari hoon. thanks
धीरे धीरे दुनिया रंग बदलती है
कल का मज़हब अब फ़ितना हो जाता है
ईश्वर को भी बहुतेरे दुःख हैं यारो
वो भी भक्तों से रुसवा हो जाता है
राज सा प्रणाम मोतियों से तोलने योग्य अशहार पर ढेरों दाद
दिलिमुबारकबाद
Itnee बड़ी बात आप ने कह दी है मैं कभी खुद को कभी अपने घर को देखता हूँ। निशब्द हो गया हूँ। आप को धन्यवाद कहना भी उचित नहीं लग रहा है। इस प्रेम को बनाये रखें।
सहते सहते सच झूठा हो जाता है
परबत कांधे का हलका हो जाता है
डरते डरते कहना चाहा है जब भी
कहते कहते क्या से क्या हो जाता है
हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा
पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है
अच्छी ग़ज़ल हुई है ,क्या खूब !
आदरणीय आप सब के बीच आ कर जो प्रेम मिल रहा है उसकी कभी कल्पना भी न की थी। यहाँ सब बहुत ही अच्छे मन वाले लोग हैं। मैं सब को धन्यवाद देता हूँ।
ग़ज़ल तो ठीक है ही मगर बहुत बढ़िया गिरह लगी । वाह,वाह …. दाद क़ुबूल फ़रमाइये।
मेरे आदरणीय आप को फिर एक बार यही कहूँगा कि आप ने मेरा एक ख्वाब पूरा किया है। 15 बरस की उम्र से कुछ प्रयत्न करता ही आ रहा था पर हमेशा हिंदी वाला होने की एक ग्रंथि पीछे खींचती रहती थी। यहाँ आ कर वो ग्रंथि मिट गयी। धन्यवाद कहना भी आप के प्रेम को हल्का करना लग रहा है।
वाह शानदार ग़ज़ल हुई है
हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा
पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है…………..ये शेर तो बहुत पसंद आया
ashwani sharma ji, mera hausala badhane ka bahut shukriya Sir. prem banaye rakhen. aabhar.
सहते सहते सच झूठा हो जाता है
परबत कांधे का हलका हो जाता है
डरते डरते कहना चाहा है जब भी
कहते कहते क्या से क्या हो जाता है
हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा
पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है
bahut umda ghazal hui hai raajmohan ji… ye teen she’r to bahut pasand aaaye… girah bhi bahut acchi lagi hai.. daad qubulen
aatish ji, aap ki itni baat bhi mere liye kya maayne rakhti hai aap nahi jaante. main bas abhibhoot ho jata hun. dhanywad.
वाह…
हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा
पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है
भीतर बहते दरिया मरते जाते हैं
धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है
बहुत अच्छे शेर कहे हैं. अच्छी ग़ज़ल.
राजीव भरोल जी आप के दो शब्द मेरे लिए बहुत क़ीमती होते हैं। आभार।